
नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट): सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) मामले में कोर्ट ने कहा है कि टेलीकॉम कंपनियों पर बकाया राशि का फिर से आकलन (रीएसेसमेंट) करना कोर्ट की अवमानना होगी। जरूरत पड़ी तो हम सभी टेलीकॉम कंपनियों के एमडी को कोर्ट बुलाकर यहीं से जेल भेज देंगे। सरकार ने एजीआर के रीएसेसमेंट की इजाजत दी तो यह धोखा होगा। अगर कंपनियों को सेल्फ एसेसमेंट की इजाजत देंगे तो हम भी इस फ्रॉड में पार्टी बन जाएंगे। यह कोर्ट की प्रतिष्ठा का सवाल है। अदालत ने कहा कि जब टेलीकॉम डिपार्टमेंट की डिमांड मानी जा चुकी है तो फिर से आकलन कैसे किया जा सकता है। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि रीएसेसमेंट और इस मामले को फिर से खोलने की इजाजत किसने दी? जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने कहा कि अदालत ने तो रीएसेसमेंट की इजाजत नहीं दी तो क्या हम मूर्ख हैं? इस मामले में जो कुछ भी हो रहा है वह चौंकाने वाला है। पूरे देश को गुमराह किया जा रहा है। टेलीकॉम कंपनियों को सेल्फ एसेसमेंट की इजाजत दी गई तो हम दूरसंचार सचिव या इजाजत देने वाले डेस्क ऑफिसर को तलब कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि कंपनियों ने कमाई की है, उन्हें भुगतान भी करना होगा। उन्होंने सेल्फ एसेसमेंट या री एसेसमेंट किया तो उन्हें अवमानना का दोषी माना जाएगा।
एजीआर मामले में टेलीकॉम डिपार्टमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। विभाग ने एजीआर के बकाया भुगतान के लिए टेलीकॉम कंपनियों को 20 साल का समय देने पर विचार करने की अपील की थी। कोर्ट ने कहा है कि 24 अक्टूबर 2019 के फैसले के मुताबिक ही टेलीकॉम कंपनियों को ब्याज और पेनल्टी चुकानी होगी। एजीआर मामले की सुनवाई के दौरान ब्याज और पेनल्टी के लिए सरकार ने पूरा जोर लगा दिया था। कंपनियों को भुगतान का समय देने की सरकार की याचिका पर अगली सुनवाई में विचार किया जाएगा। अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी। कोर्ट ने एजीआर मामले में छप रही खबरों पर भी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि अब ऐसा हुआ तो टेलीकॉम कंपनियों के एमडी जिम्मेदार होंगे।
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