फरीदकोट (विपिन मित्तल) : Program at shiri Mahdev Mandir : श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि ने मां पार्वती की महिमा सुनाते हुए कहा कि देवी पार्वती ही पूर्व अवतार में दक्ष पुत्री सती थीं। पिता के द्वारा किए गए यज्ञ में अपने पति का अपमान देखकर सती को दुख हुआ। इसलिए यज्ञ मंडप में ही योगाग्नि प्रकट करके अपने शरीर को भस्म कर दिया। शरीर छोड़ने से पहले सती ने अगले जन्म में भगवान शिव ही मेरे पति हो इस प्रार्थना को करते हुए शरीर को भस्म किया। स्वामी कमलानंद गिरि जी महाराज ने ये विचार रोज एनक्लेव स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में प्रवचन कार्यक्रम के तीसरे दिन प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए।
Program at shiri Mahdev Mandir : स्वामी जी ने महाराज कहा कि मानव जिस भावना और विचार को लेकर शरीर का त्याग करता है आगे का जन्म उसी वासना के अनुसार प्राप्त होता है। वासना युगों-युगों तक पीछा नहीं छोड़ती। महाराज जी ने कहा कि यदि भाग्य बदलना है तो निरंतर परमात्मा का स्मरण करें। ईश्वर के अतिरिक्त सृष्टि में भाग्य बदलने वाला कोई भी नहीं है। सुदामा का दृष्टांत सुनाते हुए महाराज जी ने बताया कि जब सुदामा जी को भगवान कृष्ण तिलक करने लगे तो उनको सुदामा के मस्तिक में दुर्भाग्य की रेखा दिखाई दी। उसको मिटाने के लिए भगवान ने तीन उंगलियों से जैसे सुदामा जी के मस्तक में चंदन रगड़ कर लगाया तो दुर्भाग्य की रेखा सदा-सदा के लिए दूर हो गई और सौभाग्य सुदामा जी के जीवन में जागृत हो गया।
यह भी पढ़ें : Sathapna Divas Celebration – साईं बाबा जी का मूर्ति स्थापना दिवस मनाया गया
स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य को ईश्वर का बनना होगा तभी ईश्वर सभी इच्छाएं पूर्ण करेंगे। स्वामी जी ने कहा कि पार्वती जी की परीक्षा लेने के लिए शंकर जी ने सप्तर्षियों को भेजा। पार्वती जी के तप के तेज से सभी ऋषियों के मानो नेत्र बंद हो गए। इतनी कठोर तपस्या ऋषियों को लगा कि तप की प्रतिमा ही पार्वती के रूप में खड़ी हैं। मां को सभी ने प्रणाम किया। भिन्न-भिन्न प्रकार से परीक्षा ली लेकिन पार्वती जी का संकल्प केवल शंकर जी को पति के रूप में प्राप्त करने का था। पार्वती जी ने ऋषियों से कहा कि हे महात्माओं, मैं कोई एक जन्म की प्रतिज्ञा लेकर तप करने नहीं बैठी हूं।
Program at shiri Mahdev Mandir : मैं तो जन्म-जन्मांतर जब भी विवाह करूंगी, तो शंकर जी से ही करूंगी। अन्यथा कुंवारी ही रहूंगी। आखिर ऋषियों को मां पार्वती को आशीर्वाद देना पड़ा कि शंकर जी ही आपके पति होंगे। स्वामी कमलानंद ने कहा कि तारकासुर नाम का दैत्य ऋषियों-मुनियों और देवताओं को उनके ठिकानों से इधर-उधर कंदराओं में छुपने के लिए मजबूर कर रहा था। ऐसी स्थिति में जब तक शंकर जी पार्वती जी के साथ विवाह नहीं करते और जब तक इन दोनों के संयोग से कार्तिकेय जी का अवतार नहीं हो जाता तब तक तारकासुर का वध असंभव था। भगवान भोले बाबा उन दिनों समाधिस्थ थे।
उनको जगाने के लिए सभी देवताओं ने कामदेव को तैयार किया। कामदेव का मन न होने पर भी देवताओं की आज्ञा मानकर भगवान शंकर की समाधि खोलने समाधि स्थल पर पहुंचे। मगर भगवान शंकर के तीसरे नेत्र के खुलते ही कामदेव भस्म हो जाते हैं। महाराज जी ने बताया कि जैसे शंकर जी के वक्षस्थल पर कामदेव ने अपने बाण मारे वैसे ही शंकर जी की समाधि टूट गई और भगवान शिव जाग गए।
देश विदेश की खबरों के लिए अभी डाउनलोड करें हमारा मोबाइल ऐप :-
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.threefitech.dnr_news
हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें :-
https://chat.whatsapp.com/BLC1S209t5CLqAaHcVGeYH
हमारा यूट्यूब चैनल भी सब्सक्राइब करें :-
https://www.youtube.com/c/WeekendReport
नई व ताज़ा खबरों के लिए लाइक करें हमारा फेसबुक पेज :-
https://www.facebook.com/weekendreport/
-----------------------------------------------------------------
देश-दुनिया की ताजा खबरों के लिए >>>Join WhatsApp Group Join<<< करें। आप हमें >>>Facebook<<< फॉलो कर सकते हैं। लेटेस्ट खबरें देखने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल को भी सबस्क्राइब करें।
-----------------------------------------------------------------