नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट): देश भर में आज हरियाली तीज का पर्व मनाया जा रहा है. सुहागिन महिलाओं के लिए इस दिन का बहुत खास महत्व होता है. इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लम्बी उम्र और सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं. सौंदर्य और प्रेम के इस पर्व को श्रावणी तीज भी कहते हैं. हरियाली तीज के दिन महिलाएं इस दिन महिलाएं पूरी श्रद्धा से भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. हरियाली तीज भगवान शिव और मां पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
हरियाली तीज की पूजा विधि
शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था इसलिए सुहागन स्त्रियों के लिए इस व्रत की बड़ी महिमा है. इस दिन महिलाएं महादेव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं.
– इस दिन साफ-सफाई कर घर को तोरण-मंडप से सजायें. मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, भगवान गणेश और माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं और इसे चौकी पर स्थापित करें.
– मिट्टी की प्रतिमा बनाने के बाद देवताओं का आह्वान करते हुए षोडशोपचार पूजन करें.
– हरियाली तीज व्रत का पूजन रातभर चलता है. इस दौरान महिलाएं जागरण और कीर्तन भी करती हैं.
– इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं और पूरी विधि-विधान से मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं.
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हरियाली तीज पर होने वाली परंपरा
– नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के बाद पड़ने वाले पहले सावन के त्यौहार का विशेष महत्व होता है. ज्यादातर जगहों पर हरियाली तीज के मौके पर लड़कियों को ससुराल से मायके बुला लिया जाता है.
– इस दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्व है. इस दिन पैरों में आलता भी लगाया जाता है. इसे महिलाओं की सुहाग की निशानी माना जाता है.
– हरियाली तीज पर सुहागिन स्त्रियां सास के पांव छूकर उन्हें सुहागी देती हैं.
– इस दिन महिलाएं श्रृंगार और नए वस्त्र पहनकर मां पार्वती की पूजा करती हैं.
– अच्छे वर की मनोकामना के लिए इस दिन कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं.
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हरियाली तीज का पौराणिक महत्व
उत्तर भारतीय राज्यों में तीज का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. शिव पुराण के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था. पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस कड़ी तपस्या और 108वें जन्म के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया. मान्यता है कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शंकर ने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. तभी से भगवान शिव और माता पार्वती ने इस दिन को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया.
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