जालंधर (वीकैंड रिपोर्ट) Guru Purnima 2022 : गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति श्रद्धा, सम्मान एवं कृतज्ञता ज्ञापन का पावन दिवस है। साथ ही यह गुरु के अनुशासन को धारण कर जीवन को नए सिरे से पुनर्परिभाषित करने का भी महत्वपूर्ण दिन है। यह जीवन के महाप्रश्नों के समाधान का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है, क्योंकि इस दिन हम जीवन को पूर्णता की ओर बढ़ाने वाले गुरुतत्व पर विचार करते हैं, उसके अनुशासन को अंगीकार करते हैं। उसके प्रतिनिधि किसी समर्थ व्यक्तित्व के सत्संग-सान्निध्य में जीवन की सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ते हैं और जीवन के आध्यात्मिक उत्कर्ष को साधने का संयोग जुटाते हैं।
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गुरु का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रहा है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश की संज्ञा देते हुए, उसे परब्रह्म स्वरूप माना गया है। और उसे भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है, क्योंकि गुरुकृपा से ही भगवान तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त होता है। गुरु एक व्यक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि ईश्वरीय चेतना से युक्त सत्ता का नाम है, जो शिष्यों को जीवन के परम लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है, पहुंचाता है। भारतीय संस्कृति का अविरल ज्ञान प्रवाह वस्तुत: गुरु-शिष्य परम्परा की इस समर्थ शृंखला का ही परिणाम रहा है। जीवन में सच्चे गुरु का पदार्पण बहुत बड़े सौभाग्य का प्रतीक है। लेकिन अगर हम गुरु के स्थूल शरीर तक ही अटके रहे तो उद्देश्य पूरा होने वाला नहीं। गुरु मात्र इशारा करता है, चलना शिष्य को स्वयं ही होता है।
Guru Purnima 2022 :
गुरु दिशा देता है, बढ़ना शिष्य को स्वयं ही होता है। जरूरी है अपने अस्तित्व पर गहन आस्था, इसकी परम सम्भावनाओं पर अटूट विश्वास। ईश्वर अंश होने के नाते वे सकल संभावनाएं बीज रूप में हमारे अंदर मौजूद हैं जो उस परमात्मा में हैं। इसके साथ अपनी वर्तमान स्थिति से गहन असंतोष और इससे उबरने की तड़प, त्वरा। इसके साथ जरूरी है चिंतन एवं जीवनशैली में आवश्यक सुधार, जिसके आवश्यक घटक हैं अनुशासन में ढला आहार, विहार, विचार एवं व्यवहार। स्वाध्याय-सत्संग, ध्यान-प्रार्थना एवं सेवा जैसे आध्यात्मिक प्रयोग इनमें आवश्यक परिमार्जन-परिष्कार करते हैं। इन्हीं के साथ गुरु अनुशासन के पर्व गुरुपूर्णिमा से जुड़ा पूजा-पाठ, अर्चन वंदन व कर्मकाण्ड आदि का आयोजन सार्थक होता है।