जालंधर (ब्यूरो) : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान और समूह गढा निवासीयों की और से तीन दिव्सीय कार्यक्रम ‘बंदे खोज दिल हर रोज गढ़ा के फग्गू मोहल्ला की ग्राउंड में नज़दीक पानी वाली टैंकी में करवाया गया। जिसमें आज तीसरे और आखिरी दिन की सभा कों संबोधित करते हुए नूरमहल से सर्व श्री आशुतोष महाराज के शिष्य स्वामी विष्णुदेवानंद जी ने कहा कि एक समय हुआ करता था संयुक्त परिवार हुआ करते थे। लेकिन आज समाज की स्थिति कैसे है कभी बेटे ने ड्रगस के लिए पैसे न मिलने पर अपनी माँ के बाल नोच लिए, तो कोई अपने बीमार बूढ़े पिता को ओ.पी.डी में यह कहकर मरने के लिए छोड़ गया कि बाऊजी अभी डॉक्टर की पर्ची बनवा कर ला रहा हूँ। नेश्रल सेन्टर ऑन ऐलडर अब्यूज़ के मुताबिक अमेरिका एवं यूरोपीय देशों में 65 वर्ष से अधिक उम्र वाले लगभग 90 प्रतिशत बुजुर्ग अपनों द्वारा ही शोषित एवं प्रताडि़त किए जाते है। यहाँ तक कि भारत, जिसकी संस्कृति ने हमेशा मातृदेवो भव, पितृदेवो भव जैसे पाठ पढ़ाए हैं, आज वहाँ भी मातृबोझ भव, पितृबोझ भव की गूँज सुनाई देती है। आज उसी भारत की यही स्थिति है कि काफ ी बुज़ुर्ग अपने घरों से धक्के मारकर, बेइज्ज़त करके बाहर फैं क दिए जाते है। आज ये वृद्ध अपनों के होते हुए भी अकेलेपन की मायूसी भरी जिन्दगी जी रहे हैं। एक ऐसी जि़न्दगी जिसमें अगर कुछ है तो बस नीरसता, गम, पीड़ा, तड़पन जो मौत से भी ज्य़ादा दु:खदायी है। और तो और, यह अकेलापन अकेला नहीं आता बल्कि अपने साथ बीमारियों की बारात लेकर आता है। मानसिक और भावनात्मक स्तर पर तो व्यक्ति को तोड़ ही डालता है, शारीरिक स्तर पर भी जीर्ण क्षीण करके छोड़ता है। कितनी दु:खदायी स्थिति है बच्चों को पालने पोसने में माँ बाप अपना सम्पूर्ण जीवन झोंक देते है, लेकिन बड़े होने पर वही बच्चे अपने बूढ़े माता पिता को कहाँ झोंक देते है? अकेलेपन की मार सहने के लिए वृद्धाश्रमों में, दर दर की ठोकरें खाने के लिए रेलवें स्टेशनों पर,पतन की सारी हदें तो तब पार हो जाती हैं, जब वहीं संतानें छुटकारा पाने के लिए बूढ़े माँ बाप को मार देने तक से गुरेज़ नहीं करतीं।लेकिन आज देखा जाए तो माता पिता का स•मान करने के लिए कितने कानून बनाएँ गए लेकिन सब व्यर्थ क्योंकि यह सच है कि भय पैदा करने से, कानून या नियम बनाने से नैतिक मूल्यों का उल्लेख करने से उन्हें बार बार याद दिलाने से समाज की सोच पर कुछ फ र्क तो अवश्य पड़ता है परन्तु यह भी सच है कि ऐसा परिवर्तन न केवल अपूर्ण है बल्कि अस्थायी भी है। कारण कि इस प्रकार बाहर से रोपित भावनाओं में वह आत्मीयता, वह प्रेम, वह अपनापन नहीं आ सकता जिनमें इस समस्या का वास्तविक समाधान निहित है। इसका कारण केवल यह है कि आज इंसान अपने वास्तविक धर्म से विमुख हो गया है, इसलिए अपने गुणोंको भी खो बैठा है। तभी तो उसकी सोई हुई आत्मा उसे कुछ नहीं कहती जब वह अपने ही वृद्ध माता पिता पर ज़ुल्म करता है, उनका अपमान करने का जघन्य अपराध करता है। परन्तु इस अपराध को करने के लिए उसके हाथ व कदम कमी नहीं उठेंगें जब वह आत्मिक स्तर पर जागृत हो जाएगा। जब वृद्धों के लिए किसी वृद्ध आश्रम की ज़रूरत नहीं होगी। उनकी संताने उन पर लाठी नहीं बरसाएँगी, बल्कि अपनी जि़म्मेदारी का अहसास करते हुए उनके बुढ़ापे की लाठी बनने की भूमिका बखूबी निभाएँगें। इस अवसर पर स्वामीसज्जनानंद जी ,सदानंदजी विशेष रूप से उपस्थित हुए ।गुरप्रीत जी रमन जी ने मधुर भजनों का गायन किया ]]>
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