भूख
Hunger a story by Anmol Kaur
जोरों से बारिश गिर रही है। बड़े बड़े घरों की जगमगाहट के बीच एक छोटा सा अंधेरा सा घर, जिसकी दीवारें इतनी कमज़ोर कि ऐसे लगें जैसे हाथ लगे तो गिर जायेंगी। उसी छोटे से घर से बच्चों के बिलखने की आवाज़ें आ रहीं हैं। बाहर से अंधेरा सा उदासीन सा घर उन बच्चों की बिलखती आवाज़ों से और डरावना लग रहा है। मां बार बार बच्चों को चुप करवा रही है। पर दो दिन से भूखे बच्चे अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहे।
आखिर मां घर से निकलती है, आस पास जगमगाते घरों के दरवाज़े दस्तक देती है, पर कोई बाहर नहीं आता। लड़खड़ाती हुई खाना ढूंडने बाहर सड़क पर आ गई। भूख से सर चकराने लगा और टांगे भी चलने से जवाब देने लगीं। गिरते हुए पैरों को सहारा देने वह सड़क पर लगी पोल से लग बैठ गई। तभी सामने से कोई तीखी रौशनी उसकी आंखों में पड़ी। मुश्किल से आंखें खोल देखा तो सामने से गाड़ी आ रही थी। पता नहीं क्या सूझा उसे, गाड़ी के सामने खड़ी हो गई। झटके से गाड़ी रुकी, तो वह नीचे गिर गई।
गाड़ी से एक आदमी उतरा। देखा कि फटे से कपड़ों में एक औरत ज़मीन पर गिरी पड़ी थी, आदमी उसे देखने नीचे झुक गया, वह अपनी बची हुई पूरी ताक़त जमा कर उठी, और आदमी का सर गाड़ी के बंपर पर दे मारा। वह एक ही वार में लहूलुहान हो ज़मीन पर गिर पड़ा। बेहोश पड़े आदमी की जेब से उसने बटुआ निकाला, और जल्दी से भाग खड़ी हुई।
रास्ते में सब्जी, आटा, और बाकी सामान लिया, और जल्दी से घर चल दी। घर के सामने पहुंची, तो अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, ना बच्चों के रोने की, ना लड़ने की, ना बात करने की। उसे फिक्र हुई। घर के अंदर झट से गई और बोली “देखो बच्चों, मैं खाना ले आयी, बताओ क्या खाओगे?…देखो, गोभी है, प्याज है, आलू है, गाजर है…बताओ क्या खाओगे?” पर बच्चों की कोई आवाज़ ना आयी। वह घबरा गई। चूल्हे से निकल, वह बच्चों को देखने गई, देखा कि वह सो रहे थे।
फ़िक्र और बढ़ गई, भगवान से मांगने लगी कि काश बच्चे सोए ही हों। बच्चों को पहले आवाज़ लगाई किसी ने जवाब नहीं दिया, फिर घबराई हुई उनको पास जा उठाने लगी। कोई नहीं उठा। बच्चे भूख से बिलखते गहरी नींद सो गए ,और मां, बुरी बन भी बच्चों के लिए अच्छी मां ना बन पाई।
लेखिका – अनमोल कौर
नोट – लेखिका की भवनाओं को देखते हुए कहानी के शब्दों से कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है
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