कामयाबी का रंग
Color of success – a story by anmol kaur
कॉलेज का वो पहला दिन, सावित्री घबराई सी क्लास के अंदर जा कर बैठ गई। उसकी बहन सुनैना गेट से ही अलग हो कर चल पड़ी थी। सावित्री का काला रंग और उसका सीधा साधा होना, सुनैना की शान में दाग था। वह सावित्री से हमेशा कटी कटी सी रहती। मां के लाख समझने के बाद आज उसे साथ ले जाने कोई तैयार तो हो गई पर सिर्फ कॉलेज गेट तक।
सावित्री क्लास में बैठी सब और पूरी आंखें खोल कर देख रही थी। एकदम भिन्नाई सी। इतनी सुन्दर सुन्दर लड़कियां, खूबसूरत से राजकुमारियों जैसे कपड़े, ढूंडने से भी कोई कमी ना मिल रही थी उनमें। यह सब देखकर एक पल के लिए उसकी आंखें चमक उठीं, पर उसने आंखें झपकाई और किताब में गढ़ा लीं। इतने में हिंदी की लेक्चरर क्लास में हवा की तरह आई, और झट से रजिस्टर खोल कर अटेंडेंस लेने लगी।
उसने कॉलेज के प्रॉस्पेक्ट की ओर देखा, हिंदी टीचर का नाम ‘ श्रीमती रेखा चोपड़ा ‘ लिखा था, और साथ ही तस्वीर भी छपी थी। उनकी उपलब्धिओं की ओर नज़र दौड़ाई तो देखा पूरा पेज भरा पड़ा था। 32 नॉवेल, 12 कविता संग्रह, 89 कहानी संग्रह, और उनकी 12 किताबें तो सिलेब्स में पढाई भी जा रहीं थीं। “क्या देख रही हो?” मैडम रेखा ने सावित्री के बेंच की और बढ़ते हुए उससे पूछा। बेंच पर पहुंच के देखा कि सावित्री उन्हीं के बारे में पढ़ रही थी, तो बोलीं “ऐसा बनना है क्या तुम्हे?” “जी मैडम!” सावित्री की आंखें चमकी। “तो इसके लिए क्लास में ध्यान लगाना होगा, केवल देखने से कुछ नहीं होगा, क्लास के बाद मेरे साथ चलो तुमसे बात करनी है” इतना बोल कर रेखा मैडम क्लास से निकल गई।
सावित्री अपना सामान समेट उनके पीछे हो ली। रेखा मैडम चलती-चलती बोली, “तुम्हे पता है कॉलेज में फ्रेशर्स पार्टी है ?” “जी मैडम” सावित्री बोली। “तो क्या तुम मिस फ्रेशर के लिए मॉडलिंग करना चाहोगी ?” मैडम ने उससे पूछा। सावित्री वहीं रुक गई, और चेहरे पर बड़े से प्रश्न चिन्ह के साथ मैडम की ओर देखने लगी “मैडम…मैं….और मॉडलिंग… कैसे ?” “क्यों ? तुम क्यों नहीं ?” मैडम ने उसकी तरफ देखा। “मैडम मैं कैसे ? आप देखिए मेरी तरफ, मुझे तो कोई देखना भी पसंद नहीं करता, मैं मॉडलिंग कैसे कर सकती हूँ ?” सावित्री घबराई सी बोली। “अगर कुछ बनना चाहती हो तो पहले अपने डर पर काबू करना सीखो, अपने आप पर विश्वास रखो, अपने रंग की वजह से पीछे मत हटो” मैडम ने समझाया।
सावित्री एक टक मैडम रेखा की ओर देखती रही। “ठीक है, अगर तुम नहीं करना चाहती तो तुम्हारी मर्ज़ी, मुझे क्लास के लिए देर हो रही है” कहती हुई रेखा जाने लगी तो सावित्री ने उन्हें आवाज़ लगाई “मैडम…सुनिए ! आप मेरा नाम लिख लीजिए, मैं मॉडलिंग करूंगी”। रेखा मैडम ने उसकी गाल पर धीरे से मारा, और मुस्कुराती हुई चली गई।
सावित्री को सिंड्रेला की कहानी याद आ गई। उसे रेखा मैडम उस परी सी लगी, जो सिंड्रेला की मदद के लिए आसमान से उतरी थी। सावित्री खुश थी। बहुत खुश। चहचहाती हुई वह क्लास की ओर चल पड़ी।
अगले दिन, मैडम रेखा क्लास में आईं और बोलीं “इस बार मिस फ्रेशर के लिए हो रही मॉडलिंग में आपकी क्लास की सावित्री भी हिस्सा ले रही है”। पूरी क्लास में ज़ोर की हसीं गूंज पड़ी। सावित्री की आंखें भर आईं। रेखा मैडम ने सबको चुप करवाया और अटेंडेंस लेने में जुट गईं।
लेक्चर के खत्म होने पर सावित्री मैडम के पीछे भागी और बोली “मैडम आप मेरा नाम हटा दीजिए, मुझे नहीं करनी मॉडलिंग”।
मैडम ज़रा सा हसीं और बोली “बस डर गई? ऐसे सामना कैसे करोगी दुनिया का, देखो सावित्री, जब कोई तुमसे डरता है ना तो तुम्हारे पैर नीचे खीचता है, तुम्हे बस ऐसे लोगों से डर कर नीचे नहीं गिरना, बल्कि जमें रहना है, अपने लक्ष्य की ओर…समझी? और रही नाम हटाने की बात, वो अब नहीं हो सकता नाम आगे जा चुके हैं, तुम फ़ैशन डिजाइनिंग डिपार्टमेंट में जा कर अपनी ड्रेस सिलेक्ट कर लो और तैयारी करो”। इतना बोल मैडम रेखा अपनी क्लास की ओर चल दीं।
घर पहुंचते ही, सुनैना मां को बता रही थी कि सावित्री ने मॉडलिंग में हिस्सा लिया है, और ज़ोर-ज़ोर से हस्ती हुई बोल रही थी “अब ऐसे लोग भी मॉडलिंग करेंगे”। सावित्री दुखी मन से अंदर चली गई। मां ,सावित्री के पीछे ही उसके कमरे की ओर चल दी। उसे बाह से पकड़ा और शीशे के सामने खड़ी कर दिया और बोली “देख अपने आप को! मॉडलिंग करने लायक है तू ? क्यों खुद का मज़ाक बना रही है ?” “मां मुझे नहीं करना था, मैडम ने बोला तो मैने नाम लिखवा दिया” सावित्री रोते हुए बोली। मां गुस्से से चली गई। सावित्री ने कुछ ना खाया। रात को कल की फ़िक्र से यूं ही सो गई।
सुबह उठी तो देखा 9 बज रहे थे। “ओहो…! मैं कैसे नहीं उठी!!” उठ कर जल्दी जल्दी नहा कर तैयार हो कॉलेज निकलने लगी तो मां ने रोक लिया “सावित्री रुक..!” “हां मां..! जल्दी बोलो मैं पहले ही लेट हूं” सावित्री बोली। मां ने जल्दी से उसके मुंह में दही शकर वाला चमच डाल दिया “अभी जा ही रही है तो भूखे पेट नहीं भेजुगी, और हां, कोई कुछ भी कहे, आज डरना नहीं।” सावित्री ने खुशी से आंखें भर ली और मां को ज़ोर से गले लगा लिया।
कॉलेज पहुंच कर सबसे पहले रेखा मैडम से मिली और आशीर्वाद लिया। फिर तैयार होने बैक स्टेज की ओर भाग गई।
फंक्शन शुरू हुआ और मॉडलिंग भी। जैसे ही सावित्री सामने आयी सबकी आंखें खुली रह गईं। सावित्री ने अपने लिए भारतीय पहरावा, साड़ी, चुनी थी, और साड़ी पहने वह किसी हीरे सी चमक रही थी, आज उसके हमेशा तेल से लिपटे रहने वाले बाल, हवा से बातें कर रहे थे, और उसकी सादगी, शामों सी खूबसूरत, उसकी मुस्कुराहट, फूलों सी प्यारी, सुनैना उसकी ओर देखती ही रह गई। अब बारी आयी स्वाल-जावाब राउंड की। सावित्री का नाम अनाउंस हुआ तो वह स्टेज पर चली आयी।
“तो सावित्री जी..! आपको क्यों लगता है कि आप मिस फ्रेशर बन सकती हैं?” जज ने पूछा। सावित्री ने पहले रेखा मैडम की ओर देखा और बोली “जी, मैं नहीं जानती कि मैं मिस फ्रेशर बनूंगी भी या नहीं, क्यूंकि हमारे समाज को सिर्फ गोरे रंग में ही खूबसूरती ढूंढने की आदत है, हमें बचपन से यही सिखाया गया, कि काला रंग सिर्फ अंधकार, उदासी का रंग है, जिसका रंग काला, वह कभी खूबसूरत नहीं बन सकता, पर मैं मानती हूं, कि इंसान सूरत से नहीं, सीरत से खूबसूरत होता है, मेरा मिस फ्रेशर बनना ना बनना आपका फैसला है, मैं इस स्टेज के ज़रिए बस लोगों का खूबसूरती के प्रति नज़रिया बदलना चाहती थी, धन्यवाद।” इतना कह, सावित्री वापस बैक स्टेज चली गई।
अब बारी थी इस बार की मिस फ्रेशर का नाम अंनाउंस करने की। पार्टी की होस्ट नाम अनाउंस करने के लिए जजेस के साथ स्टेज पर आयी “सभी ने बहुत अच्छा परफ्रोम किया, अच्छे अंसर दिए, और अब बारी है रिजल्ट की, और फर्स्ट रनर अप हैं….मिस सुनैना!!”
सुनते ही सुनैना हैरान हो गई “वॉट इज दिस…! हाउ कैन आई बी फर्स्ट रनर अप..? मुझसे सुंदर और कौन है पूरे कॉलेज में…!” अब बारी थी, मिस फ्रेशर का नाम अनाउंस करने की। सावित्री की धड़कन तेज़ हो गई, उसे पता था कि वह मिस फ्रेशर तो नहीं बनने वाली, पर वह जानना चाहती थी, कि सुनैना से खूबसूरत और कौन है कॉलेज में ! “एंड मिस फ्रेशर इज…मिस सावित्री..!!” सुनते ही सावित्री सन्न रह गई। सावित्री के मिस फ्रेशर बनने से पूरे कॉलेज के लिए खूबसूरती के मायने ही बदल गए।
रेखा मैडम जो चाहती थी, सावित्री ने उसे पूरा किया। साथ ही, सावित्री ने अपनी जगह कॉलेज में ही नहीं, समाज में भी बनानी सीखी।
क्योंकि अब वो जान चुकी थी की कामयाबी का कोई रंग नहीं होता उसे तो जिस रंग में देखा जाए वह वैसी ही नज़र आती है।
लेखिका – अनमोल कौर
नोट – लेखिका की भवनाओं को देखते हुए कहानी के शब्दों से कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है
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