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जालंधर (वीकैंड रिपोर्ट) : Lohri 2024 : पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन रात को आग जलाई जाती है और उस आग के चारों ओर परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा करते समय आग में तिल,गुड़,गजक,रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाई जाती हैं। लोहड़ी का पर्व किसानों के लिए ख़ास माना जाता है। लोहड़ी के पावन पर्व पर नई फसल को काटा जाता है। कटी हुई फसल को सबसे पहले अग्नि यानि लोहड़ी की आग में अर्पित किया जाता है। अग्नि को भोग लगाने के बाद उसकी परिक्रमा करके सभी अपने सुखी जीवन की कामना करते हैं। आइए जानते हैं लोहड़ी की तिथि,शुभ मुहूर्त –
लोहड़ी की तिथि
ज्योतिषियों के मुताबिक, इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ रही है। लोहड़ी एक दिन पहले यानी 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन रवि योग समेत कई बेहद शुभ योग बन रहे हैं। इन योगों में लोहड़ी मनाने से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
शुभ योग में लोहड़ी पर्व
गर करण का निर्माण लोहड़ी के दिन सबसे पहले होने जा रहा है। इस योग का निर्माण सुबह 07:59 बजे तक रहेगा। इसके बाद सुबह 10.22 बजे से रवि योग का निर्माण होगा। यह योग 15 जनवरी सुबह 7.15 बजे तक रहेगा। इसके अलावा वणिज करण का निर्माण शाम 06 बजकर 27 मिनट से होने जा रहा है। इस दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.09 बजे से दोपहर 12:51 तक रहेगा। गोधूलि बेला शाम 05:42 बजे से शाम 06:09 बजे तक है।
Lohri 2024 : लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं
लोहड़ी से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं इससे जुडी मान्यताओं पर-
पंजाब में लोहड़ी का त्योहार दुल्ला भट्टी से जोड़कर मनाया जाता है। मुगल शासक अकबर के समय में दुल्ला भट्टी पंजाब में गरीबों के मददगार माने जाते थे। उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए अमीरों को बेच दिया जाता था। कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने ऐसी बहुत सी लड़कियों को मुक्त कराया और उनकी फिर शादी कराई।
इस त्योहार के पीछे धार्मिक आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि लोहड़ी पर आग जलाने को लेकर मान्यता है कि यह आग राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है।
बहुत से लोगों का मानना है कि लोहड़ी का नाम संत कबीर की पत्नी लोई के नाम पर पड़ा। पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में इसे लोई भी कहा जाता है ।
लोहड़ी को पहले कई जगहों पर लोह भी बोला जाता था। लोह का अर्थ होता है लोहा। इसे त्योहार से जोड़ने के पीछे बताया जाता है कि फसल कटने के बाद उससे मिले अनाज की रोटियां लोहे के तवे पर सेंकी जाती हैं। इस तरह फसल के उत्सव के रूप में मनाई जाने वाली लोहड़ी का नाम लोहे से पड़ा।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि लोहड़ी होलिका की बहन थीं। लोहड़ी अच्छी प्रवृत्ति वाली थीं। इसलिए उनकी पूजा होती है और उन्हीं के नाम पर त्योहार मनाया जाता है।
कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी के तौर पर भी जाना जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी यानी गुड़ से मिलकर बना है। बाद में तिलोड़ी को ही लोहड़ी कहा जाने लगा।
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