उत्तरप्रदेश (वीकैंड रिपोर्ट) : मथुरा-वृंदावन-बरसाना में होली एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती है और यहां होली में रौनक बहुत होती है. मथुरा में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन लट्ठमार होली खेली जाती है. इस दिन नंदगांव के लड़के या आदमी यानी ग्वाला बरसाना जाकर होली खेलते हैं. अगले दिन बरसाने के ग्वाले नंदगांव में होली खेलने पहुंचते हैं. ये होली बड़े ही प्यार के साथ बिना किसी को नुकसान पहुंचाए खेली जाती है. इसे देखने के लिए हज़ारों भक्त बरसाना और वृंदावन पहुंचते हैं.हर साल इस मज़ेदार होली को खेलने की परंपरा लंबे समय से चल रही है. लट्ठमार होली का ये त्यौहार दो दिनों तक चलता है. इस बार मथुरा के बरसाना में आज 23 मार्च को विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली का आयोजन किया जा रहा है. नंदगांव में 24 मार्च को लट्ठमार होली का आयोजन किया जाएगा.
कैसे हुई लट्ठमार होली की शुरुआत
लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा ने की थी. इस होली में राधा-कृष्ण के प्रेम का रस मिला होता है, भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ बरसाने होली खेलने पहुंचा करते थे. कृष्ण और उनके दोस्त या सखा यहां राधा और उनकी सखियों के साथ तंग किया करते थे, जिस बात से रुष्ट होकर राधा और उनकी सभी सखियां ग्वालों पर डंडे बरसाया करती थीं.
लाठियों के इस वार से बचने के लिए कृष्ण और उनके दोस्त ढालों का प्रयोग करते थे. प्रेम के साथ होली खेलने का ये तरीका धीरे-धीरे परंपरा बन गया. इसी वजह से हर साल होली के दौरान बरसाना और वृंदावन में लट्ठमार होली खेली जाती है. पहले वृंदावनवासी कमर पर फेंटा लगाए बरसाना की महिलाओं के साथ होली खेलने जाते हैं और फिर अगले दिन बरसानावासी वृंदावन की महिलाओं के संग होली खेलने वहां पहुंचते हैं. इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ हर साल उमड़ती है.
ये होली बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में खेली जाती है. औरतें अपने गांवों के पुरूषों पर लाठियां नहीं बरसातीं. बाकी आसपास खड़े लोग बीच-बीच में रंग ज़रूर उड़ाते हैं. लट्ठमार होली खेल रहे इन पुरुषों को होरियारे भी कहा जाता है और महिलाओं को हुरियारिनें.