जालंधर (वीकैंड रिपोर्ट) : लॉकडॉउन की वजह से व्यापरीयों को बहुत सी परेशानीयों का सामना करना पढ़ रहा है और लोगों की जरुर बन चुका टैलीकॉम सैक्टर भी व्यपारीयों का खून चूसने में लगा हुआ है। लोगों को भारी बिल और जुर्माने डाल कर परेशान किया जा रहा है।
ताजा मामले में Airtel के एक उपभक्ता ने लॉकडाउन के दौरान अपने व्यपार में हुए घाटे के बावजूद अपने लैंडलाईन व ईंटरनैट का बिल जो की 3064 रुपय था कंपनी के प्रतिनिधि द्वारा जुर्माने में रियात के बाद 2700 रुपय भरा। इसके बाद भी उस उपभोक्ता की सेवाएं दौबारा 20 दिन बाद बंद कर दी गई और फिर से उसे 1425 रु. बिल भरने को बोला गया।
जबकि उपभोक्ता द्वारा बिल भरने के बाद अपनी सेवाओं को नियमित करने के लिए अपना बिल प्लान जो पहले 799 रु था को भी छोटा कर 499 रु कर लिया था। इसके बावजूद कंपनी ने उसे 20 दिन बाद ही 1425 रु का बिल भेज कर उसकी सेवाएं बंद कर दी। इस बारे में एयरटैल के कस्टमर केयर पर उपभोक्ता ने जब कंम्पलेंट करनी चाही तो लगभग 40 मिनट बात करने के बाद भी कोई हल नही हुआ।
अपनी मार्जी अपने असूल ?
अब सवाल यह है कि जब ग्रहाक को कंपनीं ने 364 रु लैस कर दिए थे तो फिर से उसे बिल में क्यों लगाया गया। उसके बाद जब उपभोक्ता ने अपना प्लान 499 रु कर लिया था तो फिर से बिल 799 रु के हिसाब से क्यों भेजा गया ? उसके बाद कंपनी हर ग्रहाक से लेट फीस 100 रु वसूलती है वो किस आधार पर वसूल करती है ? जबकि जुर्माने की राशी किसी प्रतिश्त के आधार पर होनी चाहिए।
अगर सीधे देखा जाए तो कंपनी बिल लेट होने पर हर उपभोक्ता से 100 रु जुर्मान वसुलती है और अगर उपभोक्ता का बिल प्लान 499 रु का है तो ये राशी उसके बिल की 20 प्रतिश्त बन गई जो की किसी भी बैंके के मासिक व्याज से 200 गुना ज्यादा है। क्या इस बारे में सरकार के कोई नियामक नहीं बनें हैं या इन कंपनीयों का सरकारी विभागों में इतन ज्यादा दबदबा है कि कोई इन्हें पूछता ही नहीं ?
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