जालंधर (वीकैंड रिपोर्ट) : Gopal Nagar Goli Kand गत कुछ दिन पूर्व अकाली नेता सुभाष सौंधी के बेटे हिमांशु सौंधी पर हुए जानलेवा हमले के मामले में मुख्य आरोपी पंचम, पिंपू , अमन सेठी, मिर्जा व अन्य को अभी तक पुलिस पकड़ नहीं पाई है। जबकि पंजाब पुलिस इन सभी की तलाश में हिमाचल के पहाड़ों की सैर तक कर आई। रेड में गए पुलिस अधिकारियों का खाली हाथ वापस आना कहीं ना कहीं इनकी कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है। क्योंकि इतनी दूर जाने के बाद भी इस रेड का फेल हो जाना, यह जाहिर करता है कि कहीं ना कहीं पुलिस की काली भेड़ें इस रेड में शामिल थी जिसके कारण आरोपी फरार हो गए या फरार करवाए गए।
अब बात करते हैं इन अपराधिक छवि वाले लोगों की जो स्कूलों के बच्चों को अपने अवैध हथियार व लाइफस्टाइल दिखाकर गुमराह करते हैं और इस दलदल में धकेल देते हैं। जिस से बाद में निकलना नामुमकिन हो जाता है। ज्यादातर इनके शिकार बड़े घरानों के बच्चे बनते हैं। जिनसे यह लोग जरूरत पड़ने पर पैसों की मांग करते हैं।
Gopal Nagar Goli Kand : अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं पंचम, पिंपू, मिर्ज़ा, अमन सेठी व अन्य
सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार पुलिस विभाग की कुछ काली भेड़ें पैसों की खातिर इन लोगों का साथ देती है। जिनसे ऐसे अपराधिक छवि वाले लोग पैसे देकर अपने आप को सुरक्षित रखते हैं और जेल की सलाखों से बचे रहते हैं। हम ऐसा नहीं कह रहे कि सभी पुलिस अधिकारी अपराधियों से मिले हुए हैं पर कुछ काली भेड़ें पुलिस विभाग को बदनाम करने में जुटी हुई है। ऐसे पुलिस वालों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह अपराधिक छवि वाले क्रिमिनल लोग किसी के सगे नहीं है फिर चाहे वे इन्हें पैसे देने वाले बिज़नेसमैन हो या इन्हें शह देने वाले राजनीतिक नेता या फिर इन्हें बचाने वाले पुलिस अधिकारी ही क्यों ना हो।
पुलिसिया कार्यवाही पर उठे सवाल
Gopal Nagar Goli Kand : यह अपराधिक लोग गिरगिट की तरह अपने मालिक को बदलते रहते हैं। हमारा पंजाब के सीएम और डीजीपी से अनुरोध है कि पंजाब पुलिस की ऐसी काली भेड़ों पर सख्ती की जाए। एंटी गैंगस्टर टास्क फ़ोर्स बनाने से कुछ नहीं होगा यदि इन काली भेड़ों पर लगाम न कसी जाए। ऐसा ही कुछ बीते माह 14 अप्रैल गोपाल नगर गोलीकांड में देखने को मिला। जहां अकाली नेता सुभाष सौंधी के बेटे हिमांशु सौंधी पर हमला करने वाले मुख्य आरोपी पंचम , पिंपू , अमन सेठी , मिरजा व अन्य पुलिस की गिरफ्त से बहुत दूर है। अब सवाल यह है कि मुख्य आरोपियों का अभी तक न पकड़े जाना क्या पुलिस पर कोई राजनीतिक दबाव है या फिर पुलिस की काली भेड़ों की मिलीभगत ?
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