लखनऊ (वीकैंड रिपोर्ट): साल 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौटने वाली भाजपा सरकार पिछले तीन सालों में 15 आईपीएस अधिकारियों को सस्पेंड कर चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के नेतृत्व वाली सरकार में इस साल अब तक 6 आईपीएस अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है। इन अधिकारियों को भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था और अन्य मामलों के चलते निलंबित किया गया। इनमें से सात अभी भी सस्पेंड हैं जबकि आठ को सेवा में बहाल कर दिया गया है।
राज्य में आईपीएस अधिकारियों को सस्पेंड किए जाने का ताजा मामला महोबा के एसपी मणिलाल और उनके प्रयागराज समकक्ष अभिषेक दीक्षित का है। योगी सरकार में सस्पेंड किए जाने वाले पहले आईपीएस अधिकारी हिमांशु कुमार थे। योगी आदित्य नाथ के सीएम के रूप में शपथ लेने के बाद 25 मार्च, 2017 को हिमांशु कुमार सस्पेंड कर दिए गए थे, जो 2010 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। उन्हें कथित तौर पर एक विशेष जाति के खिलाफ सरकार के पूर्वाग्रह के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद निलंबित कर दिया गया था। हालांकि बाद में उनको सेवा में बहाल कर दिया गया।
उसी साल 24 मई को तब सहारनपुर के एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे को जिले में एक युवती की मौत के बाद जातिगत झड़प पर नियंत्रण करने में विफल रहने के बाद सस्पेंड कर दिया गया था। 16 जुलाई 2018 को सरकार ने दो जिला प्रमुखों को सस्पेंड कर दिया था। तब संभल के एसपी आरएम भारद्वाज को जिले में एक महिला के साथ गैंगरेप और जिंदा जलाने के बाद सस्पेंड कर दिया गया था। उसी दिन प्रतापगढ़ एसपी संतोष कुमार सिंह को सस्पेंड कर दिया गया, क्योंकि उनके अधिकार क्षेत्र में रहस्यमय परिस्थितियों में एक महिला की मौत हो गई थी। तब सीएम योगी ने दोनों के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश भी दिए थे, हालांकि दोनों को फिर से बहाल कर दिया गया।
उसी साल देवरिया में एक अवैध रूप से संचालित आश्रय गृह में 20 लड़कियों के कथित यौन शोषण के बाद तत्कालीन जिला पुलिस प्रमुख रोहन पी कनय को निलंबित कर दिया गया था और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई। पिछले साल फरवरी में उस समय के एडीजी (नियम और नियमावली) जसवीर सिंह को कथित अनुशासनहीनता के लिए एक सस्पेंड कर दिया गया। उन्होंने एक समाचार पोर्टल से कहा था कि उन्हें खराब पोस्टिंग दी गई क्योंकि उन्होंने राजनेताओं और मंत्रियों को उनके एक्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
इसके दो महीने बाद राज्य सरकार ने बाराबंकी के एसपी सतीश कुमार को सस्पेंड कर दिया। आरोप था कि उन्होंने एक ट्रेडिंग कंपनी से 65 लाख रुपए की वसूली की। पिछले साल अगस्त में तब बुलंदशहर के एसएसपी एन. कोलांचि को पुलिस थाना प्रभारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग में कथित अनियमितताओं के कारण हटा दिया गया था। इसके दो सप्ताह बाद प्रयागराज एसएसपी अतुल शर्मा को जिले में बढ़ती अपराध दर को नियंत्रित करने में नाकाम रहने पर सस्पेंड कर दिया गया। उनके निलंबन से पहले जिले में 12 घंटे के भीतर छह लोगों की हत्याएं हुई थीं।
इस साल गौतम बुद्ध नगर के एसएसपी वैभव कृषण को आचरण नियमों के उल्लंघन के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया। इसी तरह राज्य सरकार ने कानपुर साउथ की एसपी अपर्णा गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई की। उन पर एक लैब तकनीशियन के अपहरण और हत्या में कथित तौर पर ढिलाई बरतने का आरोप था। अपहृत शख्स के मृत पाए जाने के बाद उन्हें अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ 24 जुलाई को निलंबित कर दिया गया था।
पिछले महीने सरकार ने पीएसी (आगरा) के डीआईजी अरविंद सेन और डीआईजी (नियम और नियमावली) को कथित भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड कर दिया। योगी सरकार ने आठ सितंबर को प्रयागराज एसएसपी अभिषेक दीक्षित को भ्रष्टाचार औ कानून व्यवस्था में ढिलाई के आरोप में सस्पेंड कर दिया।
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