इससे पहले सुनवाई की शुरुआत में रिया के वकील श्याम दीवान ने दलील दी थी कि CBI जांच बिना राज्य की मंजूरी के शुरू नहीं हो सकती है और इस मामले में जांच करने वाला पहला राज्य महाराष्ट्र है, इसलिए महाराष्ट्र सरकार की मंजूरी के बिना सीबीआई जांच नहीं हो सकती। दीवान ने बिहार के पटना में दायर प्राथमिकी को मुंबई ट्रांसफर करने की मांग की करते हुए कहा था कि मुंबई पुलिस सही तरीके से जांच कर रही है। मुंबई पुलिस 56 लोगों से पूछताछ कर चुकी है, इसलिए जांच मुंबई पुलिस के पास ही रहनी चाहिए, अन्यथा उसे इंसाफ नहीं मिलेगा।
केंद्र की ओर से पेश मेहता ने हालांकि महाराष्ट्र सरकार की ओर से दाखिल जवाब पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र में अब तक प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गई। उन्होंने इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की आवश्यकता जतायी थी। सॉलिसिटर जनरल ने सीबीआई जांच की केंद्र की मंजूरी को सही ठहराते हुए कहा था कि संबंधित मामले में प्रवर्तन निदेशालय धनशोधन की जांच भी कर रहा है, जो केन्द्रीय एजेंसी है। ऐसे में दूसरी जांच एजेंसी भी केंद्र की ही होनी चाहिए, राज्य की नहीं।
बिहार सरकार की ओर से पेश मनिन्दर सिंह ने कहा था कि राजनैतिक दबाव में बिहार सरकार नहीं, बल्कि महाराष्ट्र सरकार है, जिसने अभी तक सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में प्राथमिकी दर्ज तक नहीं की है। यहां तक कि बिहार के पुलिस अधिकारी को जबर्दस्ती क्वारंटीन करने के नाम पर रोका गया। न्यायालय को खुद इस बात पर ध्यान देना होगा कि महाराष्ट्र पुलिस का रवैया कैसा है। मनिन्दर सिंह ने कहा था कि अगर सुशांत के बैंक खाते से 15 करोड़ रुपए गायब हुए हैं तो सुशांत के पिता को पटना में रिपोटर् दर्ज करवाने का हक था। मुंबई पुलिस ने सिर्फ मीडिया को दिखाने के लिए जांच का दिखावा किया। हकीकत में कोई जांच नहीं की गई।