जालंधर (वीकैंड रिपोर्ट) : होली से चार दिन पहले मनाई जाने वाले इस एकादशी का महत्व बहुत ज्यादा है. इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं. श्री हरि विष्णु को समर्पित इस एकादशी का व्रत करने वाले भक्त को हर कार्य में सफलता मिलती है और अंत में वे विष्णुलोक को जाते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही आंवले के वृक्ष की भी पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है.
कब रखा जाएगा व्रत
आमलकी एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष को आती है. इस बार आमलकी एकादशी 25 मार्च को है. एकादशी की तिथि 24 मार्च यानी आज से शुरू हो गई है, व्रत 25 मार्च को रखा जाएगा. क्योंकि कल की एकादशी उदया तिथि के साथ शुरू होगी. हिंदू धर्म में ज्यादातर त्योहार और व्रत उदया तिथि के हिसाब से ही किए जाते हैं.
तिथि और शुभ मुहूर्त
आमलकी एकादशी की तिथि: 25 मार्च 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ: 24 मार्च 2021 को सुबह 10 बजकर 23 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 25 मार्च 2021 को सुबह 09 बजकर 47 मिनट पर
प्रारम्भ का समय: 26 मार्च 2021 को सुबह 6 बजकर 18 मिनट से 8 बजकर 21 मिनट तक
महत्व
आमलकी एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. आमलकी यानी कि आंवला. शास्त्रों में आंवला को श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है. श्री हरि विष्णु ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया, उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया. आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है. इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है. आमलकी एकादशी के दिन आंवला और श्री हरि विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. जो लोग स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनको आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए. आंवला भगवान विष्णु का प्रिय फल है. आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है.
पूजा विधि
– आमलकी एकादशी से एक दिन पहले रात के समय भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए.
– एकादशी के दिन सबसे पहले नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– अब घर के मंदिर में विष्णु की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प करें.
– संकल्प लेते हुए इस प्रकार कहें, “मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता/ रखती हूं. मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि विष्णु जी मुझे अपनी शरण में रखें.”
– अब विधि-विधान से श्री हरि विष्णु की पूजा करें.
– सबसे पहले विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराएं और पोंछकर स्वच्छ वस्त्र पहनाएं.
– अब विष्णु को पुष्प, ऋतु फल और तुलसी के पत्ते चढ़ाए.
– इसके बाद श्री हरि विष्णु की आरती उतारें और उन्हें प्रणाम करें.
– अब विष्णु की प्रतिमा को भोग लगाएं.
– विष्णु की पूजा करने के बाद पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें.
– आंवले के वृक्ष की पूजा के सबसे पहले वृक्ष के चारों और की भूमि साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें.
– पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें.
– इस कलश में देवताओं, तीर्थों और सागर को आमंत्रित करें.
– कलश में पंच रत्न रखें. इसके ऊपर पंच पल्लव रखें और फिर दीप जलाकर रखें.
– कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं.
– अब कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की मूर्ति स्थापित करें और विधिविधान से पूजा करें.
– शाम के समय एक बार विष्णु जी की पूजा करें और फलाहार ग्रहण करें.
– रात्रि में भागवत कथा और भजन-कीर्तन करते हुए श्री हरि विष्णु का पूजन करें.
– अगले दिन द्वादशी को सुबह ब्राह्मण को भोजन कराएं. उन्हें यथा शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें.
– इसके बाद आप स्वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का प्रारम्भ करें.
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