नूरमहल (वीकैंड रिपोर्ट): नूरमहल आश्रम में एक विशाल सत्संग सभा व भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी शंकरप्रीता भारती जी ने प्रवचनों में बताया कि सतगुरू वह मसीहा है जो हमारे घट के अंदर ही उस ईश्वर का दर्शन करवा देता है और उनके ओजस्वी वचन हमारे जीवन के हर पल रोशन कर देते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि गुरू की दया बरसती है लेकिन एक शिष्य को भी इसके लिए अपना पूरा प्रयास करना पड़ता है कि वो अपने गुरूदेव की चाहत को पूरा कर सके, क्योंकि गुरूदेव की हमेशा से यही चाहत हुआ करती है कि उसका शिष्य उत्तम बने और उसके गुणों की पूजा सम्पूर्ण समाज के अंदर हो। आगे स्वामी मोहनपुरी जी ने प्रवचनों में बताया कि गुरू श्रेष्ठ व्यक्तित्वों के निर्माण की कार्यशाला है। वे ब्रह्मज्ञान रूपी बीज का रोपण शिष्य रूपी भाव भूमि में करते हैं। शिष्य निरंतर साधना व ध्यान का अभ्यास कर इस सनातन ज्ञान की तपस्या करते हैं और यही अभ्यास परिवर्तन की एक प्रक्रिया है जिससे श्रेष्ठ व्यक्तित्वों का निर्माण होता है। उन्होंने बताया कि श्री आशुतोष महाराज जी का लक्ष्य किसी एक व्यक्ति, समुदाय या राष्ट्र में शांति की स्थापना नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को ब्रह्मज्ञान द्वारा शांति के सुत्र मे बांधकर विश्व कुटुम्भ का निर्माण करना है। श्री गुरूदेव के संकल्प से आज समस्त जाति, देश, भाषा, सम्प्रदायों की संकीणर्ताओं से परे एकता, बंधुत्व को छलकाते, जाग्रत ब्रह्मज्ञानियों का ऐसा ही आदर्श मानव समाज निर्मित हो रहा है।]]>
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