नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट) : सरकार ने डिजिटल लर्निंग और एजुकेशन के महत्व को समझा है। इसे देखते हुए वह देश के दूर-दराज के इलाकों में रह रहे देश के आदिवासी बच्चों को भी डिजिटल तरीके से शिक्षित करने के लिए काम कर रही है। इसके तहत सोमवार को केंद्र सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय कंपनी माइक्रोसॉफ्ट से हाथ मिलाया है। यह देश के आदिवासी इलाकों में चल रहे स्कूलों में ट्राइबल बच्चों को डिजिटल तौर पर शिक्षित करेगी।
इसके मद्देनजर मंत्रालय और माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के बीच एक समझौता हुआ है। इसके तहत कंपनी ट्राइबल स्कूलों को बदलने का काम करेगी। इसमें स्कूलों के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (आईए) का पाठ्यक्रम अंग्रेजी व हिंदी में बनाने का काम भी करेगी। इन स्कूलों में एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूलों से लेकर आकांक्षी जिलों के कुछ सरकारी स्कूलों को भी शामिल किया गया है।
इस बारे में मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी नवलजीत कपूर का कहना था कि इस समझौते से 8वीं से लेकर 12वीं तक के लगभग ढाई लाख बच्चों को डिजिटल रूप से शिक्षित किया जाएगा। उनका कहना था कि यह काम 250 स्कूलों के जरिये किया जाएगा, जिसमें 22 राज्यों के 50 जिलों में चल रहे 36 एकलव्य आवासीय स्कूलों, 12 एनजीओ द्वारा संचालित स्कूल सहित मंत्रालय के तहत आने वाले सरकारी स्कूल भी शामिल हैं।
इस कार्यक्रम के तहत दो तरह से ट्रेनिंग दी जाएगी, जहां बच्चों को डिजिटल रूप से शिक्षित करने के साथ-साथ टीचर्स को शिक्षित किया जाएगा। इसके लिए लगभग 5000 टीचर्स की भर्ती की जाएगी। सरकार का मानना है कि ये स्कूल आने वाले समय में दूसरे स्कूलों के लिए प्रेरणा बनेंगे। माइक्रोसॉफ्ट इस कार्यक्रम के जरिये स्टूडेंट्स के साथ-साथ टीचर्स को भी तकनीकी दृष्टि से शिक्षित करेंगे।
इतना ही नहीं, 500 मास्टर ट्रेनर कम्युनिटी लर्निंग का माहौल तैयार करने के लिए एक लाख टीचर्स को ट्रेनिंग देंगे। अगर ये टीचर्स सर्टिफिकेशन एग्जाम देंगे तो ये 21वीं सदी के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी आधारित टीचिंग के लिए सक्षम बन सकेंगे।
माइक्रोसाफ्ट इंडिया के ओम जीवन गुप्ता का कहना था कि बच्चों के साथ-साथ आज टीचर्स के लिए भी ट्रेनिंग जरूरी है, क्योंकि आज भी हमारे टीचर्स डिजिटल टेक्नोलॉजी से घबराते हैं। उनका कहना था कि इस कार्यक्रम के तहत बच्चों को भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एआई के साथ-साथ कोडिंग व डाटा सांइस भी पढ़ाई जाएगी।
उल्लेखनीय है कि यह पूरा कॉन्सेप्ट दुनिया के 100 से ज्यादा स्कूलों में हुए प्रयोग से मिले अनुभवों के आधार पर तैयार किया गया है। इस बारे में मंत्रालय के सचिव अनिल कुमार झा का कहना था कि इससे न सिर्फ आदिवासी बच्चों, बल्कि उनके परिवारों, उनके परिवेश व उनकी पीढ़ियों में बदलाव दिखेगा।
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