नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट): इस बार मौसम पर ला नीना का प्रभाव रहेगा और सर्दी का सितम कहर ढा सकता है। भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा के मुताबिक, ला नीना के प्रभाव के कारण इस साल कड़ाके की ठंड पड़ेगी। उन्होंने कहा कि अगर आप शीत लहर की स्थिति के लिए बड़े पैमाने पर कारक को देखते हैं तो ला नीना और अल नीनो की परिस्थितियां इसमें बड़ी अहम भूमिका निभाती हैं। ला नीना के कमजोर पड़ने से पिछले साल के मुकाबले इस साल ज्यादा ठंड पड़ने की संभावना है। ला नीना को स्पेनिश भाषा में छोटी बच्ची कहा जाता है।
क्या है ला नीना और एल नीनो
पंतनगर विवि के मौसम वैज्ञानिक डॉ. आरके सिंह के अनुसार, कमजोर ला नीना की वजह से सर्दियों में इस बार कड़ाके की ठंड रहेगी, क्योंकि यह ठंडी हवाओं के अनुकूल होता है। एल नीनो और ला नीना का मौसम के रुख को तय करने में काफी प्रभाव रहता है।
ला नीना समुद्री प्रक्रिया है, जिसमें समुद्र में पानी ठंडा होने लगता है। जिसका हवाओं पर भी असर होता है और तापमान पर प्रभाव पड़ता है। ये अंतर महासागरीय घटनाओं समेत दुनिया के मौसम और जलवायु को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने का कारण बन सकते हैं।
जबकि एल नीनो में इसके विपरीत होता है। यानी समुद्र का पानी गर्म होता है और इसके प्रभाव से गर्म हवाएं चलती हैं और दोनों का असर मानसून पर भी पड़ता है।
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके पीछे बड़ी वजह हवा की दिशा में बदलाव होना है। दरअसल एल निनो और ला नीना, एल नीनो-दक्षिणी ऑसीलेशन (ENSO) (ईएनएसओ) चक्र के हिस्से हैं और दोनों जलवायु घटना के विपरीत काम करते हैं। ईएनएसओ चक्र एक वैज्ञानिक शब्दावली है जो पूर्व-मध्य इक्वेटोरियल पैसिफिक में महासागर और वायुमंडल के बीच तापमान के उतार-चढ़ाव को बताता है। पूर्व-मध्य इक्वेटोरियल पैसिफिक भूमध्य रेखा के पास दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच का क्षेत्र कहलाता है।
शुष्क मौसम के कारण पिछले चार पांच साल के बाद इस बार अक्तूबर में दिन का तापमान नार्मल से एक से तीन डिग्री ज्यादा चल रहा है। रात का तापमान एक दो दिन से कम हुआ है। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि तीन-चार साल में ऐसा होता है।
मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने बताया कि एक सप्ताह के भीतर न्यूनतम तापमान दो डिग्री नीचे जा सकता है। पर्वतीय जनपदों में तीन-चार दिन में हल्की बारिश और ऊंचाई वाली जगहों पर बर्फबारी भी हो सकती है। यानी भारत के उत्तरी हिस्सा में सामान्य सर्दी से ज्यादा ठंड पड़ सकती है।
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