जालंधर (प्रदीप वर्मा) : लॉकडाऊन ने छोटे दुकानदारों की कमर तोड़कर रख दी है। छोटे दुकानदारों का घर भी रोज की कमाई से चलता है लेकिन दुकानें खोलने के तय समय ने इन दुकानदारों को कहीं का नहीं छोड़ा। रैनक बाजार, शेखां बाजार के वो दुकानदार जिनका सारा साल का खर्चा विवाह शादियों की शॉपिंग वाले ग्राहकों के एक गेड़े से निकल जाता था आजकल बेकार बैठकर मक्खियां मारते दिख रहे हैं।
बाजारों में भीड़ के साथ बढ़ी महंगाई
बाजारों में भीड़ बढ़ी है लेकिन सिर्फ और सिर्फ जरूरी वस्तुओं को खरीदने वालों की। जैसे कि राशन और घर के बाकी सामान की दुकानों से लोग खरीदारी अधिक कर रहे हैं। अब जो लोग घरों से निकलकर बाजारों में जरूरी सामान की खरीदारी करने दुकानों पर पहुंचे हैं उन्हें महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। चीनी की बोरी 1850 से 2000 तक, घी का पीपा 2300 से ज्यादा महंगा हो गया है। तेल के टीन के रेट भी आसमां तक पहुंच गए हैं। अब मध्य वर्गीय व निम्न वर्गीय परिवार के जो लोग खुद लॉकडाऊन की मार झेल रहे हैं उनका कहना है कि हमारी नौकरियों व दिहाड़ी पर तो पहले ही कोरोना वायरस ने डंक मार लिया है ऊपर से यह महंगाई रही सही कसर निकाल रही है।
दवाइयों की ही नहीं राशन की भी हो रही है कालाबाजारी
लोगों का कहना है जैसे मकसूदां सब्जी मंडी के लिए सब्जियों और फलों के रेट तय कर दिए जाते हैं ताकि कीमतों पर लगाम लगाई जा सके ठीक उसी प्रकार घर के राशन की चीजों की कीमतों पर भी अंकुश लगना चाहिए। अगर डीसी घनश्याम थोरी आटा, दाल, चीनी, सरसों का तेल, घी आदि की कीमतें भी निर्धारित करनी शुरू कर दें तो जो कालाबाजारी करने वाले मोटे व्यापारी लॉकडाऊन का बहाना बनाकर महंगाई बढ़ा रहे हैं उन पर नकेल कसी जा सकेगी। अब जालंधर में केवल दवाइयों की ही नहीं राशन की भी कालाबाजारी हो रही है।
जब ट्रकों की आवाजाही पर रोक नहीं तो महंगाई क्यों ?
दाना मंडी, अटारी बाजार में बैठे कई लालची होलसेल व्यापारी यह काम कर रहे हैं जबकि उनको इस बात का पता होना चाहिए कि केंद्र सरकार ने आज तक ट्रकों की आवाजाही रोकी ही नहीं ताकि राशन की किल्लत न पैदा हो। हम अपनी रिपोर्ट में उन व्यापारियों के नाम भी छापेंगे जो लोगों को लूटकर प्रशासन की आंखों में धूल झोंक रहे हैं।
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