
नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट)- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल पूरे होने पर विज्ञान भवन में तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू वही है, जो अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों की श्रद्धा का सम्मान करता है। सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, “जब हम हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं, तो सवाल उठते हैं, हम ‘राष्ट्र’ का अनुवाद ‘नेशन’ करते हैं, जो एक पश्चिमी अवधारणा है जिसमें ‘राष्ट्र’ के साथ ‘राज्य’ भी जुड़ जाता है।
‘राष्ट्र’ के साथ राज्य का होना जरूरी नहीं है। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम की विषयवस्तु भौगोलिक नहीं है, बल्कि ‘भारत माता’ के प्रति समर्पण और पूर्वजों की परंपरा है जो सभी के लिए समान है। उन्होंने कहा कि हमारा डीएनए भी एक है… सद्भावना से रहना हमारी संस्कृति है। भागवत ने कहा कि हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते; विविधता में भी एकता है। विविधता, एकता का ही परिणाम है। मोहन भागवत ने कहा, “दुनिया करीब आ गई है, और इसलिए हमें वैश्विक स्तर पर सोचना होगा।
स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था प्रत्येक राष्ट्र का एक मिशन होता है जिसे पूरा करना होता है। भारत का भी अपना योगदान है। आरएसएस की स्थापना का उद्देश्य भारत के लिए है, इसका कार्य भारत के लिए है, और इसका महत्व भारत के ‘विश्वगुरु’ बनने में निहित है। विश्व में भारत के योगदान का समय आ गया है।”
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