
Lesser known freedom fighters (वीकैंड रिपोर्ट): भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी हर कोई जानता है कि किस तरह हमारे देश के सेनानियों ने अपने, अपनी उम्र और यहां तक की अपने परिवार की चिंता किए बिना अपनी प्राणों की बलि दी है और उनके इसी बहादुरी की वजह से आज हमारा देश आजाद है और उनका नाम इतिहास में दर्ज है, लेकिन क्या आपको लगता है कि जितने लोगों का नाम आपने इतिहास में पढ़ा है क्या वे उतने ही लोग थे? नहीं, इनके अलावा और भी बहुत से स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अपने जानों की बाज़ी लगा दी और उनका नाम लोगों को पता तक नहीं है इसलिए आज आपको उन ऐसे कम ज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों से रूबरू कराएंगे जिनके बारे में आपको स्कूलों में ही पता होना चाहिए था।
• मातंगिनी हाजरा

मातंगिनी हाजरा का जन्म बंगाल के एक छोटे से गांव में हुआ और वे एक साधारण सी महिला थी, लेकिन उन्होंने 1942 में होने वाले भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। उस समय उनती उम्र कुछ 73 साल की थी। ऐसे में जब पुलिस वालों ने भीड़ को हटाने के लिए गोलियां चलाईं तो वे बिना डरे हाथ में तिरंगा लिए आगे बढ़ती गईं और दूसरों को भी प्रेरित किया। ऐसा करने पर उनपर गोली चलाईं गईं और वे गंभीर रूप से घायल हुईं और वे एक अटूट साहस का प्रतीक बन गईं। मातंगिनी हाजरी की कहानी हमें सिखाती हैं कि आजादी की लड़ाई हर किसी के लिए थी और उम्र और सामाजिक सीमाओं से काफी परे थी।
• अरुणा आसफ अलि

अरुणा आसफ अलि ने भारत छोड़ो आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अरुणा ने 1942 में बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था, इसके बाद से उन्हें भारत छोड़ो आंदलोन की धुरी पुकारा जाने लगा। इन्होंने गुप्त रूप से पर्चे छापे और लोगों में बांटे और साथ में आंदोलनकारियों को भी इकट्ठा किया। स्वतंत्रता के बाद अरुणा ने दलितों के कल्याण के लिए काम भी किया। अरुणा एक कमाल की लेखिका भी थीं, जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर भी लिखा।
• भगत सिंह के साथी

भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु के संघर्ष की कहानी हर कोई जानता है। इनकी बहादुरी की कहानियां हर जगह प्रसिद्ध है। इन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की योजना बनाई थी, जिसे इसे अंजाम भी दिया गया। लोगों को ये तो पता है कि इन तीनों को फांसी मिली थी लेकिन लोगों को इस बारे जानकारी नहीं है कि भगत सिंह के सहयोगी शिव वर्मा और जयदेव भी क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल थे और इन पांचों को फांसी हुई थी।
• अल्लूरी सीताराम राजू

अल्लूरी सीतारम राजू के बारे में हर कोई नहीं जानता। वे रम्पा जनजाति से थे और आंध्र प्रदेश के रहने वाले एक आदिवासी नेता थे। इन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश राज के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व किया। इनका जुड़ाव जंगलों से काफी था और इन्हें भू-भाग का काफी ज्ञान था और इन्होंने इस ज्ञान का भरपूर इस्तेमाल किया। इन्होंने एक मिलिशिया बनाई और ब्रिटिश चौकियों पर हमला किया। हमले से इन्होंने उनके प्रशासन और संचार नेटवर्क को तहस-नहस कर दिया। सीताराम राजू ने मूल निवासियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ीं और प्राकृतिक संसाधनों के ब्रिटिश शोषण को चुनौती दी।
• कनूरी लक्ष्मीबाई

कनूरी लक्ष्मीबाई के बारे में सबसे पहले आपको पता होना चाहिए कि ये आंध्र प्रदेश की अग्रणी पत्रकार और एक समाज सुधारक थीं। इन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आपको बता दें कि कनूरी लक्ष्मीबाई ने “द इंडियन लेडीज़ मैगज़ीन” नाम का एक समाचार पत्र शुरू किया, जिसमें सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती दी गईं और ये भारत में महिलाओं द्वारा संचालित पहली पत्रिकाओं में से एक थी। इन्होंने अपने लिखने की कला से महिला शिक्षा, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना की वकालत की। जानकारी के अनुसार कनुरी लक्ष्मीबाई ने स्वदेशी आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया, साथ में स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा दिया और ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार भी किया।
• पारंजीत: क्रांतिकारी भिक्षु

पारंजीत, श्रीलंका के एक बौद्ध भिश्रु थे, इन्होंने भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1940 में ये भारत आए और स्वामी विवेकानंद के सहयोगी बन गए। पारंजीत, सामाजिक सुधारों और राष्ट्रीय जागरण के आदर्शों से काफी प्रेरित हुए और क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लग गए। आपको बता दें कि पारंजीत ने लाला लाजपत राय के साथ काम किया और गद़र पार्टी को संगठित करने में भी मदद की। इन्हें कारावास की सजा हुई लेकिन फिर भी वे जीवनभर भारत की स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष करते रहे और आखिर में इनका संघर्ष सफल हुआ।
• ओरुगंती महालक्ष्मम्मा

ओरुगंती महालक्ष्मम्मा के बारे में जानना बहुत जरूरी है कि क्योंकि ये भी बाकी अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों की तरह एक अटूट साहस वाली सेनानी थीं। ओरुगंती, ब्रिटेश उपनिवेशवाद और जातिगत उत्पीड़न की दोहरी बुराइयों के खिलाफ एक जबरदस्त योद्धा थीं। ओरुगंति ने काफी लोगों को उस समय होने वाले अन्यायों के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। इन्होंने करों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किए और लोगों के हितों की रक्षा के लिए काफी काम किए। आज के समय में महालक्ष्मम्मा हमें सिखाती हैं कि परिवर्तनकारी बदलाव लाने के लिए इंसान को अपनी शक्ति के बारे में पता होना चाहिए।
• निष्कर्ष
इसमें जितने भी क्रांतिकारियों की कहानी को सांझा किया गया है, वे इतिहास में अज्ञात हैं और लोगों और सरकार को चाहिए कि इन सेनानियों की कहानियां बच्चों को शुरू से पढ़ाई जाए ताकि उनकी बुद्धि का अच्छा विकास हो सके। उन्हें सिखाया जाए कि गुमनाम नायकों को याद किया जाए और समझाया जाए कि किस तरह उनके बलिदान ने एक स्वतंत्र राष्ट्र का मार्ग बनाया है।
-----------------------------------------------------------------
देश-दुनिया की ताजा खबरों के लिए >>>Join WhatsApp Group Join<<< करें। आप हमें >>>Facebook<<< फॉलो कर सकते हैं। लेटेस्ट खबरें देखने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल को भी सबस्क्राइब करें।
-----------------------------------------------------------------











