
नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट)- Who was Birsa Munda ? : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिरसा मुंडा को 150वीं जयंती पर शत-शत नमन करते हुए लिखा भगवान बिरसा मुंडा जी को उनकी 150वीं जयंती पर शत-शत नमन है। जनजातीय गौरव दिवस के इस पावन अवसर पर पूरा देश मातृभूमि के स्वाभिमान की रक्षा के लिए उनके अतुलनीय योगदान को श्रद्धापूर्वक स्मरण कर रहा है। विदेशी हुकूमत के अन्याय के खिलाफ उनका संघर्ष और बलिदान हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातु गांव में हुआ। बचपन से ही वे जंगल-जमीन और अपनी पारंपरिक संस्कृति के बेहद करीब थे। पढ़ाई के दौरान उन्होंने मिशनरियों और अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों पर किए जा रहे अत्याचारों को महसूस किया। इसी ने उनके भीतर अन्याय के खिलाफ आग जलाई और वे धीरे-धीरे समुदाय में एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरने लगे।
Who was Birsa Munda ? 1857 के बाद बिरसा मुंडा की अगुवाई में आदिवासियों का अंग्रेजों के खिलाफ ऐसा पहला महासंग्राम था, जिसे उलगुलान कहा गया। 1789 से 1820 के बीच मुंडा जनजाति के बीच अंग्रेजी राज के खिलाफ विद्रोह की भावना सुलग रही थी। वजह थी खुंटकट्टी व्यवस्था पर चोट। बिरसा ने ईसाई मिशनरियों के आदिवासी जमीनों पर कब्जा करने के पैंतरे को पहचान लिया था। मिशनरियों की आलोचना की वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। युवा बिरसा सरदार आंदोलन में शामिल हो गए, जिसका नारा था -‘साहब-साहब एक टोपी है।’ यानी सभी गोरे एक जैसे होते हैं। वो सत्ता की टोपी होते हैं।
Who was Birsa Munda ? 20 मई, 1900 को बिरसा को कोर्ट ले जाया गया। मगर, तबीयत खराब होने की वजह से उन्हें जेल भेज दिया गया। अगले 10 दिन तक यही खबर आती रही कि बिरसा बीमार हैं। 9 जून, 1900 की सुबह अचानक यह खबर सामने आई कि हैजे की वजह से बिरसा की मौत हो गई। कई इतिहासकारों का दावा है कि बिरसा को धीमा जहर दिया गया था, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ती गई।
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