जालंधर (वीकैंड रिपोर्ट)- Shri Shanidev Divya Hawan : मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नज़दीक लमांपिंड चौंक जालंधर में श्री शनिदेव महाराज जी के निमित्त सप्ताहिक दिव्य हवन यज्ञ का आयोजन मदिंर परिसर में किया गया। सर्व प्रथम ब्राह्मणो द्वारा मुख्य यजमान बलजिंदर सिंह से विधिवत वैदिक रिती अनुसार पंचोपचार पूजन, षोडशोपचार पूजन, नवग्रह पूजन उपरांत सपरिवार हवन-यज्ञ में आहुतियां डलवाई गई।
सिद्ध मां बगलामुखी धाम के प्रेरक प्रवक्ता नवजीत भारद्वाज जी ने दिव्य हवन यज्ञ पर उपस्थित प्रभु भक्तों को रामचरित मानस में भगवान श्रीराम के वनवास के समय का एक बेहद मार्मिक प्रसंंग सुनाते हुए कहा कि यह प्रसंग केवट की भक्ति और श्रीराम की करुणा को बताता है। केवट अपने तर्कों से प्रभु को भी निरुत्तर कर देते हैं तथा भक्त वत्सल श्रीराम उन पर अनन्य कृपा बरसाते हैं। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या से निकलकर गंगा नदी के किनारे पहुंचते हैं, जहां उन्हें केवट मिलता है। श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
मांगी नाव न केवटु आना।
कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।।
चरन कमल रज कहुं सबु कहई।
मानुष करनि मूरि कछु अहई।।
छुअत सिला भइ नारि सुहाई।
पाहन तें न काठ कठिनाई।।
तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई।
बाट परइ मोरि नाव उड़ाई।
Shri Shanidev Divya Hawan : नवजीत भारद्वाज जी इस चौपाई का अर्थात् समझाते है कि श्रीराम गंगा पार करने के लिए केवट से नाव मांगते हैं, लेकिन केवट नाव लेकर नहीं आता। वह श्रीराम से कहता है कि मैंने तुम्हारा भेद जान लिया है, सभी लोग कहते हैं कि तुम्हारे पैरों की धूल से एक पत्थर से सुंदर स्त्री बन गई थी। मेरी नाव तो लकड़ी की है, कहीं इस नाव पर तुम्हारे पैर पड़ते ही यह भी स्त्री बन गई तो मैं लुट जाऊंगा। अंततोगत्वा भगवान श्रीराम बोले – ‘सोई करू जेहिं तव नाव न जाई’ अर्थात् भाई ! तू वही करो जिससे तेरी नाव न जाए।
नवजीत भारद्वाज जी इस प्रसंग को बेहद मार्मिक तरीके से सुनाते हुए कहते है कि जिनका नाम एक बार स्मरण करने से मनुष्य अपार भवसागर से पार उतर जाते हैं आज वहीं प्रभु केवट का निहोरा कर रहे हैं। केवट श्रीरामचन्द्र जी की आज्ञा पाकर कठौते में जल भरकर ले आया। अत्यन्त आनंद और प्रेम में उमंगकर वह ‘चरन सरोज पखारने लगा’। सब देवता फूल बरसाने लगे क्योंकि जो चरण बड़े-बड़े योगियों के ध्यान में भी नहीं आते उन्हीं चरणों को धोकर केवट ने सपरिवार उस चरणामृत का पान किया, जिससे उनके पितर भी भवसागर से पार हो गए। इसके बाद केवट ने आनंदपूर्वक प्रभु को गंगा पार करवाया और उतरकर दंडवत किया। प्रभु को संकोच हुआ इसे कुछ नहीं दिया। भगवान श्रीराम केवट को अपनी धर्मपत्नी जनकनन्दिनी सीताजी की अंगूठी दे रहे हैं परंतु केवट व्याकुल होकर चरण पकड़ रहे हैं।
Shri Shanidev Divya Hawan : नवजीत भारद्वाज जी ने प्रसंग को विराम लगाते हुए इस प्रसंग का अर्थाता समझाया कि मानो भगवान हमें सीख दे रहे हैं कि देने वाला चाहे जितना भी अधिक दे परंतु यह सोचे कि मैंने कुछ नहीं दिया है तभी उसका देना सफल होता है और लेने वाला कम होने पर भी समझे कि नहीं-नहीं बहुत अधिक दिया हैं। तभी उसका लेना सफल होता हैं। अर्थात् देना गरिमामयी हो तो लेना भी महिमामयी हो।
इस अवसर पर अमरेंद्र कुमार शर्मा,रिंकू सैनी, रोहित भाटिया,बावा खन्ना, विनोद , सुक्खा अमनदीप,चेतन अरोडा, अवतार सैनी,गौरी केतन शर्मा,सौरभ ,मोहित राणा,सौरभ अरोडा, नरेश, रजेश महाजन ,अमनदीप शर्मा, गुरप्रीत सिंह, विरेंद्र सिंह, अमन शर्मा,वरुण,विवेक शर्मा, नितिश, भोला शर्मा,गुलजार, अमृतपालसिंह,जानू थापर,अमित शर्मा, हंसराज,संदीप शर्मा, दीपक कुमार, अश्विनी शर्मा ,भोला शर्मा, जगदीश,गौरव जोशी, प्रशांत,सौरभ मल्होत्रा,सुभाष डोगरा, ऋषभ कालिया, प्रिंस कुमार, सहित भारी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।
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