भोपाल (वीकैंड रिपोर्ट): जिले का बरखेड़ी अब्दुल्ला गांव की सूरत दूसरे गांवों से बेहतर है। यहां 80 फीसदी कच्चे मकान पक्के मकानों में तब्दील हो चुके हैं। हर घर में बिजली, पानी और शौचालय की व्यवस्था है। ज्यादातर लोग सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। ये बदलाव की हकदार हैं सरपंच भक्ति शर्मा। वह अमेरिका की नौकरी छोड़कर अपने गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल रही हैं। अपनी इस उपलब्धित के कारण उन्हें भारत की प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया गया है।
भक्ति शर्मा भोपाल के नूतन कॉलेज से राजनीति विज्ञान की शिक्षा हासिल कर चुकी हैं, और इन दिनों वकालत भी कर रही हैं। सिविल सर्विस करने की इच्छा रखने वाली भक्ति को जब कई बार नाकामयाबी का सामना करना पड़ा तो उन्होंने विदेश जाने का मन बना लिया था। अमेरिका में नौकरी पाने के बाद उन्हें अपनें गांव की जिम्मेदारी का एहसास हुआ और वो भोपाल लौटीं। यहां अपने गांव बरखेड़ी अब्दुल्ला जाना शुरू किया। भोपाल से 20 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव कभी पिछड़ा कहलाता था। भक्ति ने साल 2015-16 में अपने पिता और स्थानीय लोगों के कहने पर चुनाव में अपना नामांकन करवया था। भक्ति ने दोगुने वोट हासिल करके सरपंच का पद पाया और कुछ ही साल में गांव का नक्शा बदल दिया।
भक्ति ने गांव को शहर से जोड़ने वाली सड़कें बनवाईं और गांव के 80 प्रतिशत कच्चे मकानों को भी पक्के मकानों में तब्दील कराया। गांव में जहां पहले बिजली पानी और गरीबी की समस्या थी वहीं अब हर घऱ में बिजली, पानी और शौचालय की सुविधा है। इतना ही नहीं भक्ति ने सभी गांव के लोगों को सरकारी योजनाओँ का लाभ दिलवाकर उन्हें सशक्त और आर्थिक रूप से मज़बूत भी किया है।
बरखेड़ी अबदुल्ला गांव में कम ही लोग ऐसे थे जो शिक्षित थे। भक्ति ने गांव के लोगों के घर-घर जाकर शिक्षा का महत्व समझाया। गांव की हर सड़क अब स्कूलों से जुड़ी हुई है जहां पहुंचने के लिए बच्चों को साइकिल भी मुहैया करवाई गई है। स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील भी दिया जाता है जिससे कुपोषण के आंकड़े गांव में काफी कम हो गए हैं।
सरकार की सुविधाओँ के अलावा सरपंच भक्ति ने खुद एक मुहिम शुरू की है। इसके अंतर्गत भक्ति द्वारा बच्ची की मां को बतौर सरपंच मिलने वाला अपना 2 महीने का वेतन उपहार में दिया जाता है। इसके अलावा बरखेड़ी अबदुल्ला गांव में हर बेटी के जन्म की खुशी में 10 पेड़ लगाए जाते हैं। अब तक गांव में 6000 से पौधे लगाए जा चुके हैं जिनमें से 80 प्रतिशत पौधे अब पेड़ बन चुके हैं।
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