नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट): मकर संक्रान्ति (Makar Sankranti) भारत का प्रमुख पर्व है. मकर संक्रांति (संक्रान्ति) (Makar Sankranti 2021) पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है. वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति पर हर जगह की अपनी एक अलग परंपरा होती है. इस त्योहार में खिचड़ी खाई जाती है और दान दिया जाता है. इस दिन स्नान, दान-पुण्य तो किया ही जाता है. आइए जानते हैं मकर संक्रांति के त्योहार में खिचड़ी क्यों खाई जाती है.
इस तरह हुई थी खिचड़ी खाने की शुरुआत
कहा जाता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था. इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे. इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था. इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. गोरखपुर स्थिति बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला आरंभ होता है. कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है.
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व
मकर संक्रान्ति (Makar Sankranti) के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, और विशेषकर गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं. चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति (Makar Sankranti) का ही चयन किया था. मकर संक्रान्ति (Makar Sankranti) के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं.
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