नई दिल्ली (वीकैंड रिपोर्ट): सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि बेटी को पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार मिलेगा। इसे लेकर 2005 में हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम बनाया गया था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में व्यवस्था दी है कि पहले के मामले में भी कानून लागू होगा। कानून के जानकार बताते हैं कि भारतीय सामाजिक स्थिति को देखते हुए यह फैसला बेहद अहम है। इससे महिलाएं और मजबूत होंगी और फैसले का दूरगामी परिणाम आएगा।
‘बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं’
दिल्ली हाई कोर्ट के वकील अमन सरीन बताते हैं कि शहरों में जो पढ़े लिखे लोग हैं, वह इस ओर काफी सजग और सचेत हैं। पैरेंट्स जो आधुनिक सोच के हैं, उनके लिए बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं है और लोग बेटी को अपने बेटे की तरह ही देखते हैं। ऐसे तबकों में बेटियों को बराबरी का हक मिल रहा है, लेकिन दूर गांव और भारतीय जटिल सामाजिक व्यवस्था में अभी जनचेतना की जरूरत है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद धीरे-धीरे ही सही लेकिन समाजिक बदलाव आएगा और बेटियों को बराबरी का हक मिलेगा।
पहले क्या था कानून
हिंदू लॉ के तहत महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को लेकर लगातार कानून में बदलाव की जरूरत महसूस की जाती रही थी और समय-समय पर कानून में बदलाव होता रहा है। संसद ने 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम बनाया और महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिया गया। इस कानून से पहले हिंदू लॉ के दो स्कूलों मिताक्षरा और दायभाग में महिलाओं की संपत्ति के बारे में व्याख्या की गई थी।
इस कानून में काफी विरोधाभास को खत्म करने की पूरी कोशिश की गई। इसके तहत महिलाओं को सीमित अधिकार से आगे का अधिकार दिया गया। महिला को जो संपत्ति मिलेगी उस पर पूर्ण अधिकार दिया गया और वह जीवन काल में उसे बेच सकती थी। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 में संशोधन के तहत महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार दे दिया गया और तमाम भेदभाव को खत्म कर दिया गया। बेटी को पैतृक संपत्ति में जन्म से ही साझीदार बना दिया गया।
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