जालंधर (ब्यूरो) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान और समूह गढा निवासीयों की और से तीन दिव्सीय कार्यक्रम ‘बंदे खोज दिल हर रोज’ जो कि फग्गू मोहल्ला की ग्राउंड में नजदीक पानी वाली टैंकी में करवाया जा रहा। जिसमें आज पहले दिन की सभा कों संबोधित करते हुए नूरमहल से सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी विष्णुदेवानंद जी ने उपस्थित जनसमूह को मानव तन का महत्व समझाते हुए कहा कि ‘प्रानी नराइयण सुधि लेहि । छिन -छिन अउध घटै निसि बासुर ब्रिथा जातु है देह । माईया के मद कहा करत है संग न काहू जाई । नानक कहतु चेति चिंतामनि होइ है अंत सहाई।’ अर्थात हे प्राणी उस नारायण को जानने की कोशिश कर तेरी उम्र हर क्षण घट रही है । कही ऐसा न हो कि यह शरीर व्यर्थ ही नष्ट हो जाए कहते है इंसान जवानी को विषय विकारों में नष्ट कर लेता है । और बालपन अज्ञानता में ही व्यतीत हो जाता है । वृद्व हो गया ,परन्तु अभी भी विचार नही किया । इस बुद्धि को कहाँ उलझाए बैठा है । परमात्मा ने तुझ पर कृपा करके मानव तन दिया है। यह शरीर केवल प्रभु की कृपा से ही प्राप्त होता है । प्रभु कृपा के बिना अन्य प्रयत्नों के द्वारा इस शरीर की प्राप्ति होना अति दुर्लभ है । इस लिए हे मानव तू अपने मन को खोज आज संसार में मनुष्य कई प्रकार के दुखों से पीडित है ये सुख की तालाश में कभी सिनेमाघरों में कभी हिल सटेशन और कभी शराब का सेवन करता है । परन्तु ये प्रयास सुख की प्राप्ति नही अपितु दुख को भूल जाने की चेष्टा मात्र है । इस लिए किसी महापुरष ने कहा है कि ‘दुख को भूल जाना एक अलग बात है और सुख की प्राप्ति हो जाना अलग । अ1सर मनुष्य दुख को भूल जाता है सुख की प्रप्ति हेतु प्रसत्न नही करताÓ जिस प्रकार एक मनुष्य किसी दुख को भूलाने के लिए शराब का सहारा लेता है । शराब के नशे में डूबकर सो जाता है । परन्तु प्रात:काल उठने पर परेशानी तो वैसी ही रहेगी , हाँ ये अवश्य हो सकता है कि वे नशे से परेशाण होकर वे कोई नया संकट खडा कर ले और अधिक परेशान हो जाए । आज भारत का भविष्य युवा नशे के दरिया में डूब कर ऐसे ही अपने दुखों को भूलने की कोशिश कर रहा है । और सामाज की हालत दिन प्रतिदिन बद से ब8तर होती जा रही है । पंजाब में ही 25 से 35 साल तक के 860000 नौजवान नशे के आदि है । और सरकार द्वारा किये गये सर्वे द्वारा पता चला है कि लगभग परिवार के एक मैंबर नशा करता हे। अनेको हस्पताल और नशा छुडाओं केंद्र होते हुए भी आज अंकडे कम नही हो रहे। क्यों कि ये सब नशे की दवाई से सांभव नही है केवल मन को नियंत्रण करने से संभव है । और मन का नियंत्रएा केवल अध्यात्म द्वारा ही हो सकता है । यदि हम जीवन में शाशवत सुख को हासिल करना चाहते है औत मन को नियंत्रएा करना चाहते है । तो जरूरी है कि हम पूर्ण सत्गुष् की यारण में जाए और आत्म ज्ञान को प्रप्त करें। तभी हम जीवन को सुखमय बना सकते है । यदि हम मन बुद्ध द्वारा अपने कर्मो और दुख का इलाज करते रहे तो केवल कर्मो के बन्धनों कों बढाने के अतिरिक्त अन्य किसी सफ लता की प्राप्ति नही कर सकते अन्तत:जन्म मरण के भयानक आवागमन चक्र के बन्धन को जकडने के लिए मजबूर हो जाएगा । इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि’ जउ सुख को चाहो सदा शरण राम की लेह कहु नानक सुनि रे मना दुरलभ मानुख देह’ स्वामी रमन, प्रेमानंद और गुरबाज जी ने मधुर भजनों का गायन किया।
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